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हवा खिलाफ़ है या बदगुमान है अब तक / अनिरुद्ध सिन्हा

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हवा खिलाफ़ है या बदगुमान है अब तक
गुज़रती धूप में कैसी थकान है अब तक ।

तमाम अश्क़ को पलकों में क़ैद करने दो
हमारे सब्र का ये इम्तिहान है अब तक ।

अंधेरी रात भी कैसे मुझे डराएगी
मेरा चिराग़ मेरे दरमियान है अब तक ।

किसी किताब में ख़ुशबू तलाशने वालों
दुआ करो कि ये गुलशन जवान है अब तक ।

इधर से होके कोई रास्ता नहीं जाता
पराए खेत में अपना मकान है अब तक ।