हवा चली कलकत्ते से / श्रवण कुमार सेठ

सरकी कोमल पत्ते से
हवा चली कलकत्ते से
काशी में गंगा के तीरे
खा के खरबूजे और खीरे,
जुड़ी नाव के जत्थे से
हवा चली कलकत्ते से

गर्मी से तरबतर दुपहरी,
दिल्ली लाल किले पे ठहरी,
पोछ पसीना मत्थे से
हवा चली कलकत्ते से

इक मीनार से होकर गुजरी
मधुमक्खी थीं नीद में गहरी
शहद चाट कर छत्ते से
हवा चली कलकत्ते से।

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