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हवा पानी धरा आकाश से भी दिल लगाओ अब / रंजना वर्मा

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हवा पानी धरा आकाश से भी दिल लगाओ अब।
अगर प्रिय ज़िन्दगी पर्यावरण अपना बचाओ अब॥

कठिन है आचमन करना हुई मंदाकिनी मैली
बने जलधार निर्मल कार्यशाला वह चलाओ अब॥

सजल नदियाँ हमारे देश की हैं प्राण-धाराएँ
बचाने के लिये इनको रसायन मत मिलाओ अब॥

हरे तरुवर सदा से हैं हमारे प्राण के रक्षक
सुरक्षित ही रहें ये फिर नये पौधे उगाओ अब॥

नियंत्रण में रहे जिह्वा सदा बोलो वचन मीठे
न कड़वे बोल बोलो बोल से मन को रिझाओ अब॥

भगा कर कालिया को साँवरे ने स्वच्छ की यमुना
करो फिर अनुसरण हरि का प्रदूषण हर मिटाओ अब॥

भटकते फिर रहे है जंगलों में शांति के पंछी
इन्हें दो आसरा मत व्यर्थ की बातें बनाओ अब॥