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हवा में मौत के बीज / ओमप्रकाश सारस्वत

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एक ही कारख़ाने की गैस
सारी बस्ती के नथुनों में
मौत की तरह भर गयी

रात के तारों-से
वायदा करके सोयी बस्ती
सुबह,सूरज के
स्वागत से मुकर गयी

उस दिन
भोर की घंटियों-से
पंछियों के कण्ठ नहीं बजे
कारखाने को
देवता की तरह पूजने-वाले हाथ
उत्साह से नहीं सजे

बच्चे
माओं की छातियों से
चिपक कर रोए
माँएं
बच्चों की छातियों से
पर जीवन के बोल
किसी-जिह्वा पर नहीं उगे

कारबाईड
अढ़ाई हज़ार साँसों को क्षण में
ऑक्सीज़न की तरह पी गयी
भोपाल की गैस
सैंकड़ों चंगेज़-हिटलरों के
जघन्य-अध्यायों को
मिनटों में जी गई

असफलता ने
उपलब्धि को
शर्मिन्दा कर दिया
मौन ने
मौत को
ज़िन्दा कर दिया

सारी दुनिया
हैरान थी
कि यह सब कैसे हो गया
वह कौन-सा
आततायी था
जो हवा में
मौत के बीज बो गया