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हवा में सनसनी है झूठ है क्या / महेश कटारे सुगम
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हवा में सनसनी है झूठ है क्या ।
फिज़ा भी अनमनी है झूठ है क्या ।।
परिन्दे ख़ौफ़ से सहमे हुए हैं
शहर इक छावनी है झूठ है क्या ।
लुटेरे घूमते हैं दिन-दहाड़े
ख़ुलासा रहज़नी है झूठ है क्या ।
हुई शहनाइयों की मातमी धुन
ख़ुशी भी कटखनी है झूठ है क्या ।
हमारी चीख़ से मुर्दे जगे हैं
मगर वह अनसुनी है झूठ है क्या ।
27-02-2015