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हवा ले जाएगी हमें / फरोग फरोख़ज़ाद / श्रीविलास सिंह

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मेरी छोटी सी रात में, आह
हवा का वादा है पेड़ों की पत्तियों से
मेरी छोटी सी रात में पीड़ा है ध्वंश की
सुनो
क्या तुम सुन रहे हो अंधेरे का विस्फोट?
यह आनंद अजनबी है मेरे लिए
मुझे आदत है अपनी निराशा के नशे की।

सुनो, क्या तुम सुन रहे हो अंधेरे का विस्फोट?
कुछ गुजर सा रहा है रात में
बेचैन है छत के ऊपर रक्तिम चाँद
जहाँ है टूट कर गिर जाने का स्थायी भय
बादल, जैसे हों शोक मनाने वालों का जुलूस
प्रतीक्षारत वर्षा के क्षण की,
एक क्षण
और फिर कुछ भी नहीं
कंपकंपाती है रात इस खिड़की से परे
और रुक जाती है घूमती हुई पृथ्वी
इस खिड़की से परे
देख रहा है कोई अज्ञात
तुम को और मुझे।

ओ सिर से पाँव तक हरे
रखो अपना हाथ जलती हुई स्मृति की भांति
मेरे स्नेहिल हाथों में
अपने होंठो का प्रणय स्पर्श दो मेरे प्रेमिल होंठों को
जीवन के गर्म एहसास की तरह
हवा ले जाएगी हमें
हवा ले जाएगी हमें।