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हवा / इंदिरा शर्मा

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हवा ने कहा –
अभी यहाँ , अभी वहाँ
मुझे कहाँ विराम |
फूलों की गंध ले उड़ती हूँ
कभी धरा तो कभी आसमां
हिम श्रृंगों पर डोलती फिरती हूँ , कंपकपाती हूँ |
श्वेत चादर सी बर्फ़ में ऊष्मा बन समाती हूँ
गाती हुई अंत:राग , हिम पिघलाती हूँ
कभी ढूँढती हूँ , शीतल छाँह कठोर
कभी बर्फ़ पर तूफ़ान उठती हूँ |
मुझे नहीं कोई गतिरोध
शून्य से धरती तक बेरोक टोक फेरा लगाती हूँ
नि:कलंक , नि:पाप धरती के चरण छूकर
धन्य हो जाती हूँ , उसकी रज से आकाश के भाल पर
जय तिलक लगाती हूँ |
मेरी गति पर नहीं कोई अंकुश
कभी चक्रवात बन धूम मचाती हूँ
कभी शीतल मंद पवन बन
सरिता पर तरंगें उमगाती हूँ
मैं हवा हूँ , प्राण वायु हूँ , तुम्हे जिलाती हूँ |