भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवा / शंख घोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुआ तो हुआ, नहीं तो नहीं
रखना जीवन को
इसी तरह

यही नहीं, सीखो कुछ
रस्ते पर, गुमसुम
बैठी भिखारिन की आँखों के
धीर प्रतिवाद से

है, यह सब भी है।

मूल बंगला से अनुवाद : अरुण माहेश्वरी