भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हश्र में थीं नहीं मिरी आँखें / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 हश्र में थीं नहीं मिरी आँखें
आ पने छीन लीं मिरी आँखें

सुन रही हैं तो लौट भी आएँ
सुन रही हैं कहीं मिरी आँखें?

आपके साथ-साथ चलती थीं
जी वहीं जी वहीं मिरी आँखें

हाय..आँखों के एक जंगल में
 खो गयीं खो गयीं मिरी आँखें

कौन लौटाये अब मिरी आँखें
हमनशीं-महज़बीं मिरी आँखें?

एक पागल सा मैं हूँ दुनिया में
 एक पागल सी हैं मिरी आँखें

रात सोयी हुई थी बिस्तर पर
 और छज्जे पे थीं मिरी आँखें