भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हश्र में थीं नहीं मिरी आँखें / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
हश्र में थीं नहीं मिरी आँखें
आ पने छीन लीं मिरी आँखें
सुन रही हैं तो लौट भी आएँ
सुन रही हैं कहीं मिरी आँखें?
आपके साथ-साथ चलती थीं
जी वहीं जी वहीं मिरी आँखें
हाय..आँखों के एक जंगल में
खो गयीं खो गयीं मिरी आँखें
कौन लौटाये अब मिरी आँखें
हमनशीं-महज़बीं मिरी आँखें?
एक पागल सा मैं हूँ दुनिया में
एक पागल सी हैं मिरी आँखें
रात सोयी हुई थी बिस्तर पर
और छज्जे पे थीं मिरी आँखें