हसरते दिल कभी नाकाम भी हो जाती है
ज़िन्दगी टूटा हुआ जाम भी हो जाती है
ये मसाइब की कड़ी धूप भी ढल जायेगी
दिन निकलता है तो फिर शाम भी हो जाती है
अहले-ज़र पर कोई उंगली नहीं उठने पाती
मुफ़लिसी बे-वजह बदनाम भी हो जाती है
हम ने देखा है कई बार जुनूँ के आगे
अक़्ल की पुख़्ता-गरी खाम भी हो जाती है
पेट की आग है वो चीज़ कि जिस के हाथों
आबरू हुस्न की नीलाम भी हो जाती है
पीने वालो नहीं हर रोज़ का पीना अच्छा
दुश्मने-जां-मये-गुलफ़ाम भी हो सकती है
हसरते-दीद में दर को तिरे तकते तकते
ये नज़र जुज़्वे-दरो-बाम भी हो जाती है।