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हसरत-ए-फैसला-ए-दर्द-ए-जिगर बाकी है / 'नुशूर' वाहिदी

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हसरत-ए-फैसला-ए-दर्द-ए-जिगर बाकी है
और अभी सिलसिला-ए-शाम-ओ-सहर बाकी है

आइए और नज़र से भी ज़माना देखें
ज़िंदगी है तो मोहब्बत की नज़र बाक़ी है

या मेरी सुब्ह में रौऩक नहीं हँगामों की
या मेरी शाम ब-उनवान-ए-सहर बाक़ी है

नौजवानी गई अनफ़ास की ख़ुशबू न गई
फूल मुरझाए मगर बाद-ए-सहर बाक़ी है

कूच ही कूच है हर रंग में दुनिया की हयात
इक सफ़र ख़त्म हुआ एक सफ़र बाक़ी है

याद-गार-ए-हरम-ओ-दैर है टूटा हुआ दिल
शहर वीरान हुआ एक ये घर बाक़ी है

हुस्न दिल-कश है जहाँ तक है तबस्सुम का सिबात
इश्‍क ज़िंदा है अगर दीदा-ए-तर बाक़ी है

ज़िंदगी क्या है अभी तजरबा करना है ‘नशुर’
शाएरी क्या है अभी नक़्द ओ नज़र बाक़ी है