भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है / फ़कीर मोहम्मद 'गोया'
Kavita Kosh से
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
मुज़दा ऐ दिल के मौत आई हैं
फिर गया जब से वो सनम ब-ख़ुदा
हम से बर्गश्ता इक ख़ुदाई है
तुम मेरे कज़-कुलाह को देखो
ये भला किस में मीरजाई है
दिल में आता है राह-ए-चश्म से वो
ख़ूब-ये राह-ए-आशनाई है
ज़ाहिदो कुदरत-ए-ख़ुदा देखो
बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है
काबे जाने से मना करते हैं
क्या बुतों के ही घर ख़ुदाई है
हुस्न ने मुल्क-ए-दिल किया ताराज
हज़रत-ए-इश्क़ की दुहाई है