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हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूँ / किश्वर नाहिद
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हसरत है, तुझे सामने बैठे, कभी देखूँ
मैं तुझ से मुख़ातिब हूँ, तेरा हाल भी पूछूँ
दिल में है मुलाक़ात की ख़्वाहिश की दबी आग
मेहन्दी लगे हाथों को, छुपा कर कहाँ रखूं
जिस नाम से तूने मुझे, बचपन से पुकारा
इक उम्र गुज़रने पे भी, वो नाम न भूलूँ
तू अश्क़ ही बन के, मेरी आँखों में समा जा
मैं आईना देखूँ तो, तेरा अक़्स भी देखूँ
पूछूँ कभी गुंचों से, सितारों से, हवा से
तुझ से ही मगर आ के तेरा नाम न पूछूँ
ऐ मेरी तमन्ना के सितारे, तू कहाँ है
तू आए तो ये ज़िस्म, शब-ए-ग़म को न सौंपूँ