भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हसिबा बेलिबा रहिबा रंग / गोरखनाथ
Kavita Kosh से
हसिबा बेलिबा रहिबा रंग। काम क्रोध न करिबा संग।।
हसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ़ करि राषिबा अपना चीत।।
हसिबा षेलिबा धरिबा ध्यान। अहनिसि कथिबा ब्रह्म गियान।।
हसै षेलै न करै मत भंग। ते निहचल सदा नाथ के संग।।
हबकि न बोलिबा ढबकि न चलिबा धीरे धरिबा पांव।
गरब न करिबा सहजै रहिबा भणत गोरष रांव।।
धाये न षाइबा भूषे न मरिबा अहनिसि लैब ब्रह्म अगिनि का भेवं
हठ न करिबा पड़या न रहिबा यूँ बोल्या गोरष देवं।।