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हस्ताक्षर / मन्त्रेश्वर झा

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कहिया सँ ने हम
कालक अथाह तलपर
बना रहल छी अरिपन
हँ, कहिया सँ ने हम
अपन फूट हस्ताक्षर करबाक
प्रयास कऽ रहल छी
ज्वार भाटा सँ दकचल उदधिक असीम जलपर
कहिया सँ ने हम
दौड़ि रहल छी,
दौड़ले जा रहल छी,
भागि रहल छी जे
कतहु ने कतहु
कनियों आगू तऽ पहुँची,
मुदा हमर अरिपन, बालुक ढेर मे
बिला जाइत अछि
आ टेढ़ मेढ़ हमर हस्ताक्षर
कोनो ने कोनो कछेर मे
हेरा जाइत अछि
आ जतय सँ चलल रही हम
ताहूँ सँ पाछू,
हँ पाछूँ
घुसकल जा रहल छी हम
मुदा तैयो हम अपन अरिपन
फेर बनबैत छी
आ अपन हस्ताक्षर केँ फेर रगड़ैत छी
दौड़ैत छी आरो जोर सँ।
अहाँ हमर मुँह कतबो दुसब,
कतबो देब चुपचाप उपदेश
रुकत नहि हमर कामनाक
ई रथ
हमहूँ तऽ छी कालेक
एक खंड
हमरा आर खंड-खंड नहिं करू
हमर परिणामक व्यर्थता पर
नहि हँसू अहाँ
हम तऽ लगले रहब
अरिपन बनेबा मे
अपना ढंगक
करिते रहब अपन
हस्ताक्षर
पकड़ि तऽ लैते छी
कतबो क्षणभंगुर हो
जिजीविषाक अपन रत्न।