हहरे कदम, रोवे तीर / सतीश मिश्रा
हहरे कदम, रोवे तीर हो कन्हइया जी
बिहरे जमुनवाँ के नीर।
मुरली-बिरह अब सहलो न जाय कान्हाँ
दहिया दहेड़िया में महलो न जाय कान्हाँ
ठुनके किनारे धैल चीर हो कन्हइया जी,
बिहरे जमुनवाँ के नीर।
अँखिया न मूने राधा, हँथवे बहक जाए
कुँहके करेजवा त लोरवे छलक जाए
पीअले न पीअल जाए पीर हो कन्हइया जी
बिहरे जमुनवाँ के नीर।
नन्द जी के अँगना से मधुवन उड़ा के गेल
जसोदा के गोदिया में पतझर बिछा के गेल
सउँसे बिरिज हे अधीर हो कन्हइया जी
बिहरे जमुनवाँ के नीर।
पिघले इंजोरिया के देहिया से अमरित
रतिया अन्हरिया के नेहिया हे सिसकित
बंसिया कसम, तोर कीर हो कन्हइया जी,
बिहरे जमुनवाँ के नीर।
केतना सुनाऊँ अब कहलो न जाए कान्हाँ
पिंजड़ा में सुगना के रहलो न जाए कान्हाँ
तजले तजाए न सरीर हो कन्हइया जी
बिहरे जमुनवाँ के नीर।