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हाँ, कल ही तो / कुमार रवींद्र
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हाँ, कल ही तो
धूप हमारे घर में दिन-भर बनी रही
तुम आईं थीं
हमने देखा दिप-दिप होते
पूरे घर को बड़े सबेरे
जहाँ-जहाँ तुमने साँसें लीं
वहीं हुए ख़ुशबू के डेरे
हाँ, कल ही तो
आँगन ने तुलसी-चौरे की बात कही
तुम आईं थीं
बरसों पहले
इच्छा-वृक्ष लगाया हमने
वह फूला कल
भरी-दुपहरी तुमने फैलाया था
अपना सोनल आँचल
हाँ, कल ही तो
भीतर तक मीठी-मीठी रसधार बही
तुम आईं थीं
साँझ-हुए था हुआ स्वयंवर
धरती ने आकाश वरा था
अपने आँगन के बरगद का
अक्स धूप में हुआ हरा था
हाँ, कल ही तो
जो कुछ बिगड़ा था-वह सब हो गया सही
तुम आईं थीं