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हाँ, बोलो / कुमार रवींद्र
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हाँ, बोलो
क्या कहती हो तुम
अभी गीत को
पूरा होने में देरी है
लय अज़ीब है
सजनी, जो हमने टेरी है
उसे साध दो
वह कुत्ते की टेढ़ी है दुम
निकली नहीं धूप भी अब तक
कहाँ रह गई
जोत दिये की
ना जाने किस घाट बह गई
बात है नई
नहीं लगाया तुमने कुंकुम
उम्र-ढले यह भी है
दुविधा रही हमारी
क्यों मिठास साँसों की
है हो जात्ती खारी
क्यों काले हैं
सुरजदेव के घोड़ों के सुम