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हाँ, मैं प्यार करता हूँ / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
ओ प्रिये
मैं तुम्हारी आँखों में बसे
दूर कहीं के
गुमसुम-खोयेपन से
प्यार करता हूँ
मैं घाव पर पड़ी
पपड़ी-सी
तुम्हारी उदास मुस्कान से
प्यार करता हूँ
मैं उन लमहों से प्यार करता हूँ
जब बंद कमरे की खुली खिड़की से
हम दोनों इकट्ठे-अकेले
अपने हिस्से का आकाश नाप रहे होते हैं
हाँ, मैं उन अनाम पलों से भी
प्यार करता हूँ जब
तुम्हारे अंक मे
अपना मुँह छिपाए
ख़ालीपन से ग्रस्त मैं
किसी अबूझ लिपि के
टूटे हुए अक्षर-सा
बिखरता महसूस करता हूँ
जबकि तुम
नहींपन के किनारों में उलझी हुई
यहीं कहीं की होते हुए भी
कहीं नहीं की लगती हो