भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ / रमेशचन्द्र शाह
Kavita Kosh से
खाओ तो भी पछताओ,
छोड़ो तो भी पछताओ,
लगा दिया मिट्टी के मोल
आ जाओ भई आ जाओ!
ना भई ना, ना भई ना!
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ
ऐसी गाजर मिले कहाँ,
लाल टमाटर मिले कहाँ,
एक रुपए में पाँच किलो,
जल्दी-जल्दी आकर लो,
ले लो, ले लो, अंटी खोल!
ना भई ना, ना भई ना!
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ
ककड़ी ले लो नरम-नरम,
देखो जी मत करो शरम,
इसके आगे नारंगी-
भी लगती फीकी-फीकी,
दूँगा देखो पूरा तोल!
ना भई ना, ना भई ना!
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ
ले जाओ किशमिश बादाम,
पके पके ये मीठे आम,
कलमी और दशहरी हैं,
ले जाओ मिट्टी के दाम,
खा भी लो चीजें अनमोल!
ना भई ना, ना भई ना!
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ
जल्दी जल्दी आ जाओ,
जी भरकर सब कुछ खाओ,
फुरसत से फिर पछताओ!
ना भई ना, ना भई ना!
हाँ भई हाँ, हाँ भई हाँ