भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाँ मेरी आँखों में वही दिलदार है / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ मेरी आँखों में वही दिलदार है,
जिस पै शैदा सभी संसार है।
जो अयोध्या में आदर्शधारी बना,
और ब्रज में जो लीला बिहारी बना।
ऐसे नटवर पै सब कुछ निसार है॥ हाँ मेरी आँखों में...
कभी झाँकी दिखाई धनुष बाण से,
कभी मुरली बजाई मधुर तान से।
हर जगह पर वो खुद आशाकार है॥ हाँ मेरी आँखों में...
कभी बलि के यहाँ विप्र रूप बना।
कभी द्रौपदी के लिए वस्त्र बना।
कभी खम्भे से वो लेता अवतार है॥ हाँ मेरी आँखों में...
कभी कंचन की लंका लुटाता फिरे,
कभी गोकुल में माखन चुराता फिरे।
हर चमन में उसी की बहार है॥ हाँ मेरी आँखों में...
जो बाराह वामन परशुराम हैं,
जो कि घनश्याम और जो कि राम हैं।
दीन दृग 'बिन्दु' से जिनको प्यार है। हाँ मेरी आँखों में...