भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ रे, चुनरी रंगवलू सूगापंखी / भोजपुरी
Kavita Kosh से
हाँ रे, चुनरी रंगवलू सूगापंखी, छटंकी बोलिया मारे,
हाँ रे, रतिया के बतिया गुलबिया जिलेतिया अइसन लागे।।१।।
हाँ रे, कवन जाले पुरुबी, कवने पुर पटना,
हाँ रे, आहो रे राघे, कवन जाले लवंगी रे बनिजिया।।२।।
हाँ रे, कवन आने चीरवा हो, कवन आने कंगनवा,
हाँ रे, कवने आने, आहो रे राघे, सिर के सेनुरवा।।३।।
हाँ रे, बाबा जाले पुरुबी, हो भइया पुर पटना
हाँ रे, सइयाँ जाले, आहे रे राधे, लवंगी रे बनिजिया।।४।।
हाँ रे, बाबा आने चीर, भइया आने कंगना,
हाँ रे, सइयाँ आने, आहो रे राधे, सिर के रे सेनुरवा।।५।।
हाँ रे, सिर धइले र्गेडुली, हो राघे, पहिरि लिहले चीरे,
दहिया बेंचे गइलीं हो राधे, जमुना के रे तीरवा।।६।।