भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाँ रे, मनरा बजावे राजा कोसी मइया पार / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ रे, मनरा बजावे राजा कोसी मइया पार, कि धनि राजा इनरपति अगरे जुझार रे,
कि हो बिरहा बसु मोर, कि नया-नया कामिन कवन रंग होय।।१।।
हाँ रे, पलटन परे समलपुर हो, हुनी गरद निसान,
कि मारी-काटी चल लवटल हुनी गरद निसान।।२।।
हाँ रे, ढेबुआ जे लूटले, रुपइये हो कपड़ा अनमोल, कपड़ा अनमोल।
त रोइत आवेले फढाइत बाने ना ढोर नीर।।३।।
कि आगे-आगे थारु चले, पीछे दोनवार रे,
बीचवा फउदेहु बीचले फउदेहु, भइले असवार रे।।४।।
धनि बिसकरमा जी सिरिजे नयपातल, सिरिजे नयपातल,
हवलदार, सूबेदार, जिमिदार लोग हो,
दरोगवा सोभई बनूखिया हो, हुनी गरद निसान।।५।।