भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाँ रे, सूतल रहलीं कदम जुड़ि छहियाँ / भोजपुरी
Kavita Kosh से
हाँ रे, सूतल रहलीं कदम जुड़ि छहियाँ वंस धइलीं सिरहाने।।१।।
आहो रामा कवने निरमोहिया बंसिया बजावे, कि चिहुँकि उठेले जीव मोर रे।।२।।