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हां... के ‘जतन’ बणाऊं मैं / हबीब भारती

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हां..... के ‘जतन’ बणाऊं मैं
हर भूमि के लोगां की रै कथा सुणाऊं मैं

भ्रष्टाचार म्हं सब तैं आगै भारत म्हं कहे जावां
कितणा ए जुल्मी राज चलै चुपचाप पड़े सहे जावां
जात पांत पै राज बांट दे हम खूब बंटे रहे जावां
आग लगा दें कोए धरम की बिन सोचे दहे जावां
बिना विरोध गहे जावां ना झूठ बताऊं मैं

अधर्म खिलाफ हुआ युद्ध अड़ै महाभारत कहया जा सै
जीत बताई सच्चाई की हुआ नसट पाप कहया जा सै
फेर भी बेईमानी अर झूठ मैं हरियाणा ताज कहया जा सै
बिकैं एमएलए पीस्यां मैं अड़ै दुनिया मैं आज कहया जा सै
छळ का राज कहया जा सै के घणा गिणाऊं मैं

बड़े आदमी जो नेता बाज्जैं मूर्ख म्हारा बणाया के ना
वादे करज्यां फेर बदलज्यां मन्नै सही बताया के ना
प्रण तोड़ण की अड़ै रीत पुराणी थारी समझ मैं आया के ना
सुदर्शन चक्कर प्रण तोड़ कै कृष्ण नै चलाया के ना
फेर भी भगवान कुहवाया कै ना किसकै दोष लगाऊं मैं

चालीस लाख गरीबी लैन तळै नहीं पेट भराई खाणा
फेर भी जमकै करां बड़ाई जणूं सुरग बण्या हरियाणा
बोली बोलणा ऊपरल्यां की म्हारा ढंग पुराणा
पीवण नै अड़ै लास्सी कोन्या बोलां दूध दही का खाणा
कुछ चाहिए विचार लगाणा रै के राह सुझाऊं मैं

खैर बड़े वड्रयां की बात छोडदयो अपणी सुणो कहाणी
इनकै मुंह कानी देख्यां गये ना ताकत अपणी पिछाणी
तैमूरलंग था दुनियां म्हं नामी अड़ै पड़गी मुंह की खाणी
फेर लड़े खूब सन् सत्तावन म्हं हुई घणी म्हारी हाणी
हामनै पड़गी फांसी खाणी इब थारै याद दिलाऊं मैं

फेर इतणे जुल्म करे गोरयां नै म्हारी रे-रे माट्टी करदी थी
ना बखसे बच्चे और बूढे कमर तोड़ कै धरदी थी
गाम फूंक दिये साहबां नै म्हारी नसीं गुलामी भरदी थी
जघां-जघां लटके फांसी पै म्हारी हिम्मत दीक्खी मरदी थी
हबीब सो गई जनता डरदी थी रै ईब जगाऊं मैं