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हाइकु -1 / विभा रानी श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
झरता पत्ता -
मैं कब्रों के बीच में
निशब्द खड़ी।
चाल में सर्प
श्रृंग से भू पे जल-
सद्यस्नाता स्त्री
मूढ़ हाट में-
अँधा टेकता चले
ड्योढ़ी ,श्रृंग पै ।
दादा व पोते
खेल रहे लागोरी-
बाल दिवस।
बाल दिवस-
रमुआ बना रहा
मिट्टी की रोटी।
वन में आग-
मिट्टी लेप से बचा
खरोंचा नाम ।
वनाग्नि फैली -
हरे से लाल हुए
चिनार पत्ते।
दीपकोत्सव-
दादी ने माँ को सौपा
थाती का तोड़ा।
फाग व जाम-
रंगी चुन्नी ढूढें वो
पेटी के कोने।
अभिसारिका-
ताज बनवायेगी
रेजा की जिद्द।