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हाइकु / कुँवर दिनेश सिंह / कविता भट्ट

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1
झींगुर बोले
दिन रात के बीच
अस्तित्व डोले।

निन्यारा बास्णा
दिन-राता क बिच
साकत डोल्दी
2
तारों का मेला
रात है जगमग
चाँद अकेला।

गैंणों कु थौळ
रात च जगमग
जून यकुली
3
मन अधीर
दर दर भटके
मौन समीर।

मन ब्याकुल
मोर-मोर भटकू
चुप्प च हवा
4
अकेला पेड़
घर की दीवार से
सटा है पेड़।

यकुलु डाळु
घौरै कि पाळि परैं
चिबट्यूं डाळु
5
एक बेचारा
साँझ के क्षितिज पे
पहला तारा।

एक बिचारु
रूमुकै कि धार माँ
पैलु वु गैणु
6
सूर्य से मिला
वह आख़िरी तारा
फिर न मिला।

सुर्ज तैं मिलि
वु आखरी गैंणु छौ
फीर नि मिलि
7
अकेला पड़ा
बांजों के महल्ले में
बुराँश खड़ा।

यकुलि ह्वे गि
बाँजु का ख्वळा माँ
बुराँस खड़ू
8
खड्ड है सूखी
किनारे पर गाय
धूप भी रूख़ी।

खाड च सूखीं
तीरा परैं च गौड़ी
घाम भी रुक्खु
9
द्वारे तुलसी
बरखा में नहाई
धूप झुलव्स्वी।

मोर तुलसी
बर्खा माँ नहे ग्याई
घाम-ल्हबसै
10
धुँध है छाई
सूरज की आँखों में
नमी—सी आई।

धुएँरु छै गे
सुर्जा का आँखों माँ बि
सितला ह्वेन
11
लाई है पौन
मेरे दुआरे पर
संदेसा मौन।

ल्है ग्याई हवा
म्यारा मोर परैंईँ
रैबार बौगा
12
जीता या हारा?
अकेला पड़ गया
भोर का तारा।

जिति चा हारि
यकुलि पड़ि ग्याई
बिन्सरी-गैंणु
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