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हाइकु / हरदीप कौर संधु / कविता भट्ट

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 1
सावन-झड़ी
गुलगुले-मठरी
माँ की रसोई.

सौंणों सगर
गुलगुला मठरी
ब्वे का रूसाड़ा
2
कैमरा क्लिक
मुँह छुपाए अम्मा
ताई कहे न!

कैमरा क्लिक
मुक लुकौंदी ब्वे बी
बौडी बुल्दी ना
3
बादल छाए
दादी न चैन पाए
उपले ढके.

बादळ लग्याँ
दादी तैं नी च चैन
ग्वाँसा ढकणी
4
रात अँधेरी
दे रही है पहरा
बापू की खाँसी.

रात अन्ध्यारी
जग्वाळी कन्नी रौंदी
बुबाजी खाँसी

5
याद किशोरी
मन खिड़की खोल
करे कलोल।

याद पठोळी
मन खिड़की ख्वन्नू
कन्नू छेड़ सी
6
भूल न पाया,
जब-जब साँस ली;
तू याद आया।

भूलि नी सक्यूँ
जब-जब साँस ले
तू याद आएँ
7
वक्त ने भरे
तेरी याद के जख्म
फिर से हरे।

बग्तन भरी
तेरी खुद का घौ बी
फीर से हौरा
8
जन्मी बिटिया
खुशबू ही खुशबू,
आँगन खिला।

जल्मी जु नौंनी
खुसबो ई खुसबो
चौक खिली गी
9
तू मेरा सूर्य
घूमती जाऊँ ऐसे,
मैं तेरी धरा।

तु म्येरु सुर्ज
घुमणु इन रौलू
मैं तेरी पिर्थी
10
दर्द व प्रेम
मुझे जो तूने दिया
आँचल भरा।

पिड़ा र माया
मैं तैं जु तिन द्याई
पल्ला भोरी ग्ये
11
विश्वास-पाखी
ढूँढे हरी शाखाएँ
फैला भुजाएँ।

बिस्वास पंछी
खोजणु हौरा फाँगा
फैलै अंग्वाळ
12
छाईं घटाएँ
ज्यों सिर से फिसली
तेरी चूनर।

छै ग्ये बादळ
जु मुंड बटी रड़ी
तेरी य चुन्नी
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