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हाइकु 117 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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कविता नईं
चुटकला घड़ थूं
मंचां जम‘सी
हवा रो हाथ
छुवै बादळी डील
चमकै बीज
रमतियां रा
रंग-रूप तो जुदा
माटी तो अेक