भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 120 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जबान नईं
पूंछ हिलाणो सीख
सै सुख मिलै


पाळोड़ा पंछी
उडै आंगण छोड़
पूठा नीं आवै


थिर तणाव
कठै गुमगी हंसी
ई नगर री