भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 120 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
जबान नईं
पूंछ हिलाणो सीख
सै सुख मिलै
पाळोड़ा पंछी
उडै आंगण छोड़
पूठा नीं आवै
थिर तणाव
कठै गुमगी हंसी
ई नगर री