भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 128 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
ताजमहल
मांय ई हुय रैयी
प्रेम री हत्या
मिंदरा मांय
है सोने रा अम्बार
गरीब भूखा
घड़ी री सूयां
करावै काळ-बोध
किता‘क चेतै?