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हाइकु 133 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
गांधीवादी हां
धारां गांधी रा गाभा
मौके-टांकड़ै
कठै गया बै
मेळा‘र मगरिया
सजै बजार
मन अरंग
कैई रंग‘र भाव
उपजां आपां