भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 138 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुळगचिया
लै‘रां तरसीज‘र
सिवजी बणै


अे मोबाइल
कूड़ सिखावणियां
साचा गुरूजी


होठां नै अठै
पूरी-पूरी आजादी
सीं दी सै जीभां