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हाइकु 146 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
लाख संभाळो
दरपण रो पाणी
तो उतरसी
जे कसूळिया
सै कलम री कूख,
जणै रचना
सगळा घरां
तरेड़ां ई तरेड़ां
साबत घर?