भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 157 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
मिलावट ! ना
सिंथेटिक क्रांति है
जन हित में
ठंढे पाणी रो
निगळ जावै घड़ो
नाख दै खुणै
सांझ सदीव
लागै म्हनैं उदास
थारै दाई ई