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हाइकु 158 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
भ्रस्टाचार रो
सिस्टाचार निभावां
हैरिटेज है
सुख तो हुवै
समंदर रा झाग
दुख अथाग
बल्ब समझ
जळणो बुझणो है
खटकै हाथ