भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 186 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
गंगा तो आवै
जे हुवै भागीरथ
इण धरा पे
हर सीपी रै
भाग में नईं हुवै
मोती जणना
बजारां मांय
दौड़ै सोनमिरगा
सीता थूं चेत