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हाइकु 187 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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फसलां झूमैं
जद-जद धरा मा
मीठी मुळकै


न आभो बोलै
न कीं धरा ई कै‘वै
प्रीत निभावै


पिंजरवासा
सुपनां लां अकासां
अधर झूलां