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हाइकु 20 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
भर दोपारै
गिरीजग्यो सूरज
बधै अंधारो
सगळा काच
चमक-दमक‘र
तिड़क जाय
हंसा म्हारा रे!
उड चल अबै तो
घर पीव रै