भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 21 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
अलखिया रे!
कद लख सूं थारो
असली रूप
सुरता म्हारी
उडीक में ई बीती
ऊमर आखी
किंयां पैछाणा
सै धार लिया रूप
बैरूपिया रां