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हाइकु 51 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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फळ-फूल‘र
रूंखड़ा भुलाय दै
बीज रो त्याग
मरू-ताप सूं
काळा है तन, पण
मन-ऊजळा
गोरी कंवळी
मरूथळ री रेत
मा रै मन ज्यूं