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हाइकु 92 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
तिरसा कंठ
समझै बूंद-बूंद
पाणी रो मोल
सहकारिता
सै मिलजुल खाओ
राज आपां रो
तिस्सो ना मर
इत्ता ठेका खुलाया
छक-छक पी