भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकू / टोमास ट्रान्सटोमर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात - बारह पहियों वाली गाड़ी
गुजरती है लोगों के स्वप्नों को
कंपकंपाते हुए.

  • * *


कुहरे में गुनगुनाहट.
स्थल से दूर मछली पकड़ने की एक नाव
-- लहरों पर ट्राफी.

  • * *


बाल्कनी पर
खड़ा हुआ हूँ सूर्यकिरणों के एक पिंजरे में
इन्द्रधनुष की तरह.

  • * *


सूर्य उतर आया है नीचे
हमारी परछाईयाँ गोलियथ हैं
शीघ्र ही सब कुछ परछाईं होगा.

  • * *


अन्धकार से जन्मा.
मैं मिला एक बहुत बड़ी परछाईं से
एक जोड़ी आँखों में.

  • * *


जाओ, वर्षा की तरह शांत
मिलो सरसराती हुई पत्तियों से
सुनो क्रेम्लिन की घंटियों को !

  • * *


जगमगाते शहर :
गीत, गल्प, गणित --
मगर अलग तरह से.

  • * *


जड़वत विचार, मानो
रंगीन पत्थरों की पच्चीकारी
राजमहल के प्रांगण में.

  • * *


निराशा की दीवार...
इधर-उधर मंडराते कबूतर
बिना चेहरों वाले.

  • * *


झूलते बगीचों वाला
एक लामा मठ.
युद्ध-दृश्यों के कुछ चित्र.

  • * *


नवम्बर का सूरज --
तैरती हुई मेरी विशाल छाया
मरीचिका बनती हुई.

  • * *


वे मील के पत्थर, हमेशा
कहीं जाते हुए. सुनो
-- एक कबूतर की पुकार.

  • * *


मृत्यु झपट्टा मारती है मुझपर.
मैं एक समस्या हूँ शतरंज में.
उसके पास समाधान है.

  • * *


मूर्खों के पुस्तकालय की
आलमारी में पड़े हुए
अनछुए धर्मोपदेश.

  • * *


देखो मैं कैसे बैठा हुआ
जैसे जमीन पर खींच लाई गई डोंगी.
मैं प्रसन्न हूँ यहाँ.

  • * *


वीथियाँ चलती हुईं दुलकी चाल
सूर्यकिरणों की लगाम से
किसी ने पुकारा क्या ?

  • * *


कुछ घटित हुआ.
चंद्रमा ने प्रकाश से भर दिया कमरा.
ईश्वर जानता था इस बारे में.

  • * *


छत टूट गई
और मृत लोग देख सकते हैं मुझे
देख सकते हैं मुझे. वह चेहरा.

  • * *


वर्षा की सनसनाहट सुनो.
ठीक उसके भीतर पहुँचने के लिए
मैं बुदबुदाता हूँ एक राज.

  • * *


स्टेशन के प्लेटफार्म का दृश्य.
कितनी अप्रत्याशित शान्ति --
यह भीतर की आवाज है.

(अनुवाद : मनोज पटेल)