हाइटेक प्रेम / लालित्य ललित
किसी को
चाहो तो इतना चाहो
ना कुछ सोचने का मन करे
बस मन करे
रम जाओ रब में
जग में
मीरा का प्रेम
राधा का प्रेम
कितना निश्छल है
अलौकिक सत्ता को
पा लेने का
जो
नैसर्गिक सुख है
जो भौतिकवादी नहीं है
वह अंतर्मन का
वह प्रणयस्थल है
जहां बेरोक-टोक
जाया जा सकता है
बगै़र लाग-लपेट के
आडंबरों से दूर
बेईमानी से दूर
हरे रामा, हरे कृष्णा
कृष्णा-कृष्णा हरे-हरे
‘‘जो मैं जानती !
प्रीत किया दुख होई,
नगर ढिंढोरा पीटती,
प्रीत करे न कोई’’
ऐसे उद्घोष हवा में
तैर रहे हैं
आपने किसी को
प्रेम किया है, किया होगा
मगर इस क़दर नहीं
आज तो प्रेम के
मायने बदल गए
एस.एम.एस.
चैटिंग, इंटरनेट का
भ्रम जाल
बरिस्ता, कॉफी-डे, के.एफ.सी.
या मैक्डोनाल्ड रेस्तरां बने हैं
आश्रय स्थल
या
नये ज़माने के आकर्षित करते
मॉल
कहां रह गया है प्रेम ?
कहीं नहीं
यह किस चैप्टर का नाम है
यह कालिदास कौन था ?
अमोल पालेकर कौन है ?
तुलसीदास ज़रूर
कालिदास का भाई होगा
नई पीढ़ी का कथन सुन
मैं ख़ामोश था
ख़ामोश था वक्त
और मेरे भीतर का प्रेम ।