हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू / हकीम 'नासिर'
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
गिर के दामन पे बने थे जो सितारे आँसू
लाल ओ गौहर के खज़ाने हैं ये सारे आँसू
कोई आँखों से चुरा ले न तुम्हारे आँसू
उन की आँखों में जो आएँ तो सितारे आँसू
मेरी आँखों में अगर हूँ तो बिचारे आँसू
दामन-ए-सब्र भी हाथों से मिरे छूट गया
अब तो आ पहुँचे हैं पलकों के किनारे आँसू
आप लिल्लाह मिरी फिक्र न कीजे हरगिज़
आ गए हैं यूँही बस शौक़ के मारे आँसू
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू
तू तो कहता था न रोएँगे कभी तेरे लिए
आज क्यूँ आ गए पलकों के किनारे आँसू
आज तक हम को क़लक़ है उसी रूसवाई का
बह गए थे जो बिछड़ने पे हमारे आँसू
मेरे ठहरे हुए अश्कों की हकीकत समझो
कर रहे हैं किसी तूफाँ के इशारे आँसू
आज अश्कों पे मिरे तुम को हँसी आती है
तुम तो कहते थे कभी इन को सितारे आँसू
इस क़दर गम भी न दे कुछ न रहे पास मिरे
ऐसा लगता है कि बह जाएँगे सारे आँसु
दिल के जलने का अगर अब भी ये अंदाज़ रहा
फिर तो बन जाएँगे एक दिन ये शरारे आँसू
तुम को रिम-झिम का नज़ारा जो लगा है अब तक
हम ने जलते हुए आँखों से गुज़ारे आँसू
मेरे होंटो को तो जुम्बिश भी न होगी लेकिन
शिद्दत-ए-ग़म से जो घबरा के पुकारे आँसू
मेरी फरीयाद सुनी है न वो दिल मोम हुआ
यूँही बह बह के मिरे आज ये हारे आँसू
उन को ‘नासिर’ कभी आँखों से न गिरने देगा
मेरी आँखों में इन्हें लगते हैं प्यारे आँसू