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हाक़िमी आदेश का लहरा के ख़ंजर ले गए / पवनेन्द्र पवन


हाक़िमी आदेश का लहरा के खंजर ले गए
छीन कर झोंपड़ हमारे कुछ सिकन्दर ले गए

मैंने अपने साल भर के सारे मौसम खो दिए
कहने को दीवार से तुम इक कैलेण्डर ले गए

आड़ कर ऊँचे भवन की झोंपड़ों से चोर सब
झील जंगल पर्वतों के शोख़ मंज़र ले गए

काँच के घर में गए जो लोग रहने के लिए
साथ अपने रास्तों के सारे कंकर ले गए

मन की शान्ति के लिए थे हम गए मंदिर ‘पवन’
चोर जूते, हाथ से परशाद बन्दर ले गए