भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाकिम के बोली / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाकिम के बोली-चाली मेॅ छाली छै।
हुनको काजू किसमिस भरलाॅे थाली छै।

दुनिया के ठोरोॅ पर पपड़ी छै लेकिन
हुनको ठोरोॅ पर देखोॅ तेॅ लाली छै।

ननदोसी के साथें चलली नयकी तेॅ
रस्ता-पैरा बाजै कत्ते ताली छै।

मोका देखी के गोबर थपियाबोॅ नी
देखोॅ तेॅ बगलोॅ मेॅ गहिड़ो नाली छै।

हुनको बूतरू छेना चोभै गारी केॅ
हमरोॅ बुतरू कॅे मुॅह मेॅ की जाली छै।