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हाकै मांय / नीरज दइया
Kavita Kosh से
म्हैं अठै
बरसां बाद बावड़ियो हूं
क्यूं चावूं देखणो
बो घर-गळी-आंगणो
कांई लेणो-देणो अबै
उण बीत्योड़ै बगत रै ऐनाणां सूं ।
बदळै बगत
स्सौ कीं हाफी-हाफी
तद नीं करै
मनां री गिनार ।
चोखो है भायला
थूं पोखै है कविता
इण हाकै में
परखै-पिछाणै पीड़
थारै जैड़ा रै ताण ई
साबत है
गैला-गूंगां रा सींग-पूछ ।
लोग कविता नै
गेला-गूंगा रा सींग-पूंछ समझै ।