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हाथी घृणा का / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
मेरी राह रोके एक जर्जर टीला है
जिसके विरुद्ध मेरे भीतर
घृणा का एक हाथी
चिंग्घाड़ रहा है
करुणा की एक पतली जंज़ीर है
जिससे बंधा है हाथी
हालाँकि जंज़ीर को
कभी-कभी
तोड़ डालता है हाथी
पर तोड़कर भी
जंज़ीर से इतना डरता है
कि बढ़ नहीं पाता है आगे।