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हाथी दादा धम्मक-धम्मक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
हँसी -ठिठौली बच्चों की सुन ,
खिले हज़ारों फूल ।
हाथी दादा धम्मक-धम्मक ,
जा पहुँचे स्कूल ।
पकी जामुने, जमकर खाईं
खूब दिखाई शान ।
खा-पीकर फिर मच्चक-मच्चक ,
पहुँच गए मैदान ।
सवेरे से मैच क्रिकेट का
था वहाँ पर जारी ।
बैट पकड़कर मारे छक्के
जीत गए थे पारी ।
ड्राइंग रूम में दादा जी ,
फिर अचानक आए ।
दीवार पर अपनी सूँड से ,
कई चित्र बनाए ।
लाइब्रेरी में जाकर फिर
पुस्तक एक उठाई ।
सूप जैसे कान हिलाकर
कविता एक सुनाई ।